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هان مــرو آنجـــا که غـــم روزی پریشــانت کند
زخمه هــای خـــار و خـس از رَه پشیمــانت کند
گیســــوانت را مــده بر دســـتِ بادِ هــرزه گــرد
تـرســــم از غـــم راهـــیِ کــــوه و بیـابـانـت کند
هوشیــاران را ندیــدم من بــه حیــرتگــاهِ عشــق
مِی به کـف آور که با یک جـرعه حیـرانت کندشوخ چشـمم وَه نمی فهمــد چــــرا حرفــم هنــوز
دل بِهِــل تــا بی دلـــی در خـــانـه مهـمـانت کنـدای که در سر شد هوای سلطنت ؛ در کوی عشق
گــو گــــدای رَه نشــین را تــا کــه سلطـانت کندزیـــرِ باران رو اگـــر داری هــــوای بوســـه ام
« ابــر را بوســیـده ام تـا بـــوسه بارانـت کند »